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Tuesday, April 10, 2012

शि‍वचरन :: जगदीश मण्‍डल


शि‍वचरन

सोलह साल पोहुलका शि‍वचरना
शि‍वचरन बनि‍ बि‍रजैए।
जे कहि‍यो गामक मैल छलए
होशगर ि‍कसान कहबैए।
भूमकमक कि‍छुए बर्ख बीता
शि‍वचरना छोड़लक गाम अपन।
कि‍यो कहए छोड़लक, कि‍यो छोड़ौलक,
नै बजैए कथा अपन।
खसैत-खसैत, खसैत शि‍वचरना
गामक पति‍त कहबए लगल।
छाती जखैन काज नै केलकै
गाम छोड़ि,‍ नेपालक बाट धेलक।
आन देश आन मुलूकमे
बि‍नु जगजगार लोक मनुखे रहैत।
लूरि‍-मुँह जेहेन रहए छै
तेहने शक्‍लक बाट धरैत।
वि‍राटनगरसँ कोस भरि‍ उत्तर
एक गि‍रहस्‍त ऐठाम पहुँचल शि‍वचरना।
तरकारीक खेतीक नक्‍शा बना
बीघा भरि‍ खेत लेलक भरना।
घराड़ीक पाइ रहबे करै
खेतेमे चापाकल धसौलक।
दु-परानीक खोपड़ी बना
मेहनतक आसन जमौलक।
साल भरि‍ बाद नोकर रखलक
मेहनतसँ खेतो दोहरौलक।
साले-साल उठैत-उठैत
गि‍रहस्‍त अपनाकेँ पौलक।
मनमे उठलै देस-कोस,
गाम-घर ओ सर-समाज।
बेचि‍-बि‍‍कीन सभ कि‍छु नेपालक
आबि‍ गेल अपना समाज।
संजोगो नीक भेटलै
दस बीघाक एक पार्टी भेटलै।
एकेठाम दसो बीघा कीनि‍
घर-घराड़ी सभ कि‍छु भेटलै।
      ))((

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