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Wednesday, April 11, 2012

एकैसम सदीक देश :: जगदीश मण्‍डल


एकैसम सदीक देश

पैघ आकांक्षाक सदी एकैसमी
उत्तरार्द्ध बीसमि‍ये छूलक मन।
नव-नव तकनीकक बले
सुख-समृद्धि‍क, भरलक मन।
रंग-बि‍रंगक रूप सजल छै
दुनि‍याँक आजुक रंग
आगू भऽ कोनाे दौग रहल छै
कोनो पाछू रगड़ैत मन।
पहाड़-पहाड़ी, पठार बीच
नदी-पोखरि‍, झील जहि‍ना।
गढ़ल-बनल देश अपन
आदि‍वासीसँ उद्योगपति‍ तहि‍ना।
कि‍यो कलकलाइत पेट अन्न लेल।
तँ कि‍यो ललाइत रैन-बास लेल।
कि‍यो भनभनाइत स्‍वस्‍थ शरीर लेल।
कि‍यो चि‍चि‍आइत मुँह बोल लेल।
चि‍त्र-वि‍चि‍त्र बनल देश छै
देखि‍ सुनि‍, बूझि‍ वि‍चार करू।
सोचि‍-सोचि‍, ि‍वचारि‍-वि‍चारि‍
एक रंगा तसवीर सजू।
एक दि‍स सि‍क्कि‍म, मि‍जोरम
मणि‍पुर ओ नागालैंड।
लेह-लद्दाक टपि‍ते टपैत
कनैत-कुहरैत जेसलमेर।
समुद्र ऊपर मुम्‍बै हँसै छै
भोगक भंडार बनल छै।
पाबि‍-पाबि‍ हि‍लकोर समुद्रक
स्‍वर्गक संसार बनल छै।
उठैत प्रश्न अछि‍ एतए?
मुम्‍बैये, महान भारत छि‍ऐ
आकि‍ अरूणाचल, झारखंडो
भारते छि‍ऐ, भारते छि‍ऐ।
आगू देखैसँ पहि‍ने
उनटि‍ पाछुओ देखए पड़त।
जेकरा कलपलदार बुझै छी
संहारक बनि‍ चलैत रहत।
एकैसम सदी पहुँचलोपर
नर-संहार एहेन केना?
की एहने सुख-समृद्धि‍क सपना?
मुर्दघटी बनल, आवास केना?
जएह सर्जक बनि‍ ठाढ़ होइए
वएह वि‍ध्‍वंसक बनि‍ पड़ैए।
सुख-समृद्धि‍क रंगमंचपर
दरि‍द्रा-दुख नाच करैए।
जेकरा बले नाच करब
बामा-दहि‍ना भौक माड़ैए
आँखि‍-मि‍चौनी खेल पसारि‍
अपन पीठ अपने ठोकैए। 
    ))((

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