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Sunday, April 15, 2012

कर्मयोगी :: शि‍वकुमार झा ‘टि‍ल्‍लू’

कर्मयोगी

ने भगता योगी आ ने डलबाह
हरखक तरंग नै, नै वि‍पत्ति‍क आह
पहि‍लुक दर्शन कहि‍या भेल
नै अछि‍ मोन
जहि‍यासँ देखैत छि‍यनि‍
वएह गंभीर मुस्‍की..
ककरो उपहास नै
ककरो परि‍हास नै
नै ठोरपर वसन्‍त गान
नै हि‍अमे ग्रीष्‍मक मसान
नेना सभक प्रि‍य अध्‍यापक
कर्मयोगी- अपकल
कोना भेलनि‍ पि‍तामह चूकि‍?
रीति‍क कालपुरुखक नाओं-
कामदेव!!!
कोनो नै काम
भलमानुष नि‍ष्‍काम
तेसर पहरक वि‍झनीक बाद
जगतधात्रीक नि‍त्‍य दर्शन
तामझामक गाममे रहि‍तो
त्रि‍पुंडसँ मुक्‍त
छुच्‍छे हाथे तर्पण
आब की मंगैत छथि‍ बाबा?
झबरल आंगनमे शक्‍ति‍ सहचरी
जाइ रवि‍-शशि‍क कि‍रणकेँ
आत्‍मसात् करबाक लेल
लोक करैछ अनर्गल प्रलाप
व्‍यर्थ कुटि‍चालि‍ रचैछ
चोरि‍ कऽ आडंवर करैछ
तनयक रूपमे ओ दुनू
बाबाक आंगनक श्रवण कुमार
अचला चंचला बनि‍
देलनि‍ कन्‍याक उपहार
दु:खक सोतीमे
जखन अकुलाइत छैक मनुक्‍ख
तखन आस्‍ति‍कता जगैछ भूख
मुदा! ति‍रपि‍त बाबा
नै करैत छथि‍ भगवानसँ छल
सुरधामे जल
मन नि‍रमल....
समाजमे छन्‍हि‍ शीतलताक आह
सदेह कवि‍ नै
तखन वैदेहीक चाह?
अपने नेपथ्‍यमे रहि‍
नाटकक कएलनि‍ ि‍नर्देशन
देसि‍ल वयनाक प्रति‍
कर्मक गति‍ अर्पण
एकाध प्रहसन लि‍खि‍
अकथ्‍य कवि‍ता गढ़ि‍
कतेक आजाद भऽ गेल चि‍न्‍हार
मुदा! इजोतक स्‍त्रोतक पि‍रही अन्‍हार
कोनो नै छन्‍हि‍ छोह
सबहक उत्‍कर्ष हुअए
यएह आश, यएह मोह
की ब्राह्मण की अछोप
की धानुक की गोप
सबहक बाबा......
जे गाछ, छि‍अए छाहरि‍
वएह उतुंग
वएह श्रंृग
सि‍क्‍कठि‍ हुअए वा नरकटि
स्‍वीकार करैए पड़तनि‍ समाजकेँ
बाबा सन चेतनशील मनुक्‍खकेँ
जे संस्‍कार लुटाबए
सबहक कल्‍याणक लेल
अन्‍तर्मनसँ सोहर गाबए...।

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