गाछी भुताइ
बाबाक रोपल गाछी भुताइ।
घाम बहा जरि-जरि सिचलनि।
तामि कोड़ि-कोड़ि गाछ रोपलनि।
नै बुझलनि बॉझिक किरदानी
देखि-देखि मन हर्षित भेलनि।
जे ने कहियो माटि देखलक
फुनगी पकड़ि अकास पकड़लक।
नै देखि जड़ि दिस कहियो
सदति उड़ि बादल पकड़लक।
गामक पोखरि जहिना डेरौन
तहिना दबकल अढ़मे मन।
कानि-खीजि सदति कलपैत
कियो ने बँचबैबला अछि पैत।
जइ धरतीपर बहति गंगा
कमला सहित जमुना धार।
शान्त भऽ सरस्वतीक संग
पहुँचैत मिलि गंगा सागर।
तिल-तिल उत्तर ढलान दिस
अनबरत बहैत सूर्जक धार।
नाचि-नाचि मिलि गाबए
जेबै जरूर-जरूर, ओइ पार।
गाछी बीच बैसि सदि बाबा
सभ किछु देखि रहल छथि।
बाँझक बच्चा अनकर नेत
बिहुँसि-बहुँसि कहै छथि।
नै अछि बौआ गाछी भुताइ
मनक सभ किरदानी छी।
माँजह मन चमकाबह सदिकाल
ककरो नै मनमानी छी।
))((
No comments:
Post a Comment