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Tuesday, April 10, 2012

जीबैले लड़ए पड़त :: जगदीश मण्‍डल


जीबैले लड़ए पड़त

लड़ि‍ जीबू आकि‍ मरि जीबू
जि‍नगीक दू धार बहै छै।
अपन सभ भाग्‍य नि‍र्माता
मनोनुकूल जि‍नगी बनै छै।
लक्ष्‍य बि‍नु जि‍नगी ओहने
जेहेन बाँझ-बहि‍ल होइए।
सुगरक मल सदृश ओकर
नीप-पोत वि‍हीन होइए।
सभ चाहए आनन्‍दक जीवन
डारि‍-पात फूल फुलाए।
बि‍नु सुख-चैने केना फुलेतै
अछैते पराने जि‍नगी कुम्‍हलाए।
सुख-चैन फड़ै दुख मेटेने
दुख मेटाएत संघर्षमे।
तीन दुख पसरल छै सगतरि‍
बौआइत ढहनाइत जीवनमे।
दैहि‍क-दैवि‍क भौति‍क ताप
बि‍लगा-बि‍लगा देखए पड़त।
बि‍नु देखने दि‍शाहीन भऽ
औना-पौना सड़ि‍ मरब।
तीनूक अपन-अपन दुनि‍याँ
लीला तीनूक रंग-बि‍‍रंग।
तीनू बाँटि‍ नेने छै धरती
कुदैत‍-फानैत रंग-रंग।
    ))((

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