फगुआ
जुआनीक जे रूप देखबैए
तेकरेसँ ठट्ठा करै छी।
अपन करम-धरम बिसरि
फगुआ हँसि-हँसि गबै छी।
दोहाकेँ कवित्त बना-बना
दोगे-दोग बिहुँसैत चलू।
रचि कविता जोगिरा केर
र- र- र- र- गर्द करू।
रूप सजि करता-करतीक
श्मशान रूप बनबै छी
रस फूल माधुर्य फलक
जी-जान कहाँ चिखै छी।
जहिना सरसो-झुन-झुन करैए
गहुमनिया रंग लपकति रहैए।
केचुआ छोड़ैक मसीम परखि
लपटि-लपटि लपटए लगैए।
ताड़ वीणाक कम्पन्न जहिना
ओर-छोड़ झनकबए लगैए।
तहिना पएरक उठल झुन-झुन
डारि-पात, सिर डोलबैए।
पाबि फागु वसुन्धरा जहिना
अलसाएल-मलसाएल झुमैए।
पाबि जुआनी बिरह तहिना
बिड़हा-बिड़ही बौराइए।
ढोल-डम्फ ताल मिला-मिला
दुनू नाचए-गाबए लगैए।
फड़ल-फुलाएल देखि वसुधा
अकास पवन डोलए लगैए।
चान-सुर्ज बैसि दुनू संग
हिस्सा-बखरा फड़ियबए लगैए।
जहिना पुनोक चान चमकए
मध्य–मस्त सूर्ज सेहो हँसैए।
अपन-अपन दशा-दिशा
मिलि दुनू गाबए लगैए।
बामा हाथ थिड़कि-थिड़कि
दहिना चकमक चमकए लगैए।
जहिना जाड़क पाला पकड़ि
शीतल हृदए मिलि जुड़ौलक।
ठिठुरल-ठिठुड़ल पकड़ि कली
वसन्त गीत सेहो सिरजौलक।
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