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Wednesday, April 11, 2012

दबाइये रोग :: जगदीश मण्‍डल


दबाइये राेग

कहि‍या कतएसँ रोगाएल
रोगे ओछाइन धेने एलौं।
जी तोड़ि‍ तरद्दुतो करैत
रोगे संग-संग जीबैत एलौं।
रोगो कहाँ छोड़ए चाहैए
अपन ओझराएल-पोझराएल बान
रोगाएल देखि‍-देखि‍ कहैए
ओ अछि‍ये महा बूड़ि‍‍बान।
उक्कठ-पाकठ बरमहल करैए
कखनो नै छोड़ए अपन सान।
ताकि‍-ताकि‍ मीठ दवाइ आनि‍
गमबए चाहैए अपन जान।
कहै छलै पेट पाचन बि‍गड़ल
पीबए लगलौं महाजाइम।
आठे दि‍न अबैत-अबैत
सरदी-बोखार पकड़लक तानि‍।
कोनो कि‍ एना आइये होइए
आकि‍ होइत आएल जुग-जुगसँ।
जएह पोषक सएह शोषक बनि‍
लीड़ी-बीड़ी करैत जुग-जुगसँ।
मनुख-मनुखक बीच अड़ि‍या
घुमा बुइध बुधि‍‍यार बनौलक।
दि‍न-राति‍ छाँटि‍-छुटि‍ आड़ि‍
साबरमंत्र पढ़ा मुग्‍ध बनौलक।
मनतरो कि‍ हरही-सुरही
पीठि‍या-पीठि‍या मन घुमौलक।
हँसि‍-हँसि‍ पकड़ि‍ चालि‍
बुइधसँ यारी करौलक।
छी ठाढ़ बुधि‍यार बनि‍-बनि‍
जि‍नगीक परि‍चए कहाँ पेलौं।
अपनो जि‍नगी नै देखै छी
कतएसँ कतए एलौं-गेलौं।
पाँच तत्‍वक जीवन पाबि‍-पाबि‍
जि‍नगीमे कि‍छु नै केलौं
अकारथ जि‍नगी बना-बना
बेर्थमे जि‍नगी गमेलौं।
कि‍ कहब कि‍छु ने फुड़ैए
पीछराह बाट पकड़ि‍ लेलौं।
केम्‍हरो-सँ-केम्‍हरो पीछड़ै छी
मृत्‍युकेँ सदति‍ नतैत एलौं।
भार बना जीवन ली‍लाकेँ
कुहरि‍-कुहरि‍ जीबै छी।
आशा-आसी ताकि‍ रहल छी
जि‍नगी बाट कटै छी।
    ))((

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