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Tuesday, April 10, 2012

ठनका :: जगदीश मण्‍डल


ठनका

कहाँ बूझि‍ पेलौं अखन धरि‍
तड़कैत ठनकाक मि‍रगी।
आगि‍-पानि‍ दुनूक बीच
पकड़ि‍-पकड़ि‍ चाभि‍ जि‍नगी।
सच्‍चे कहल जाए यौ भैया
हाथ चढ़ा सि‍र पकरू।
साहोर-साहोरक (स-हरि‍,स-हरि‍) धुन दि‍अए
कहाँ छै ठनका उकरू।
गुलाबी गाढ़ लाल देखि‍
लग खसैक ठनकाक आगम।
आँखि‍-कान आबो बचाउ
नै तँ बाट भेटत दुर्गम।
खाली-खाली अकासमे
एहेन ठनका बनै कतए?
अनचोकेमे उठि‍ते उठि‍
एते शक्‍ति‍ अनै कतए?
गैस-तरल, तरल गैस
आँखि‍ मि‍चौनी खेल करैए।
उड़ि‍-उड़ि‍ अकास चढ़ि‍
आगि‍क अंगोर बनैए।
वएह अंगोराक शक्‍ति‍ पाबि‍
उसरन-बि‍सरन दुनू बनैए।
सुतल मन आशा जगाउ
पानि‍-पाथरक बचाव बनाउ
सोलह कला सजल अहाँ
जि‍न्‍दादि‍लीक वसन्‍त गाउ।
मंजि‍ल दूर कोनो नै छै,
दुनि‍याँक नक्‍शा बनल छै।
चीन्‍ह-पहचीन्‍ह बाट ताकि‍
नापल डेग गनल छै।
बनि‍ बटोही बाट घरू
भरल-पूरल संसार छै।
रस्‍ते-पेरे बटखरचा भेटतै
संगबेक भरमार छै।

))((

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