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Tuesday, April 10, 2012

चेतन चाचा :: जगदीश मण्‍डल


चेतन चाचा

चेत-चेत चलू चेतन चाचा
सरसड़ाइत समए ससरैए।
समए छोड़ि‍ कतबाहि‍ जखने
ठहकि‍-ठहकि‍ नक्षत्र कहैए।
आगू डेग उठबैसँ पहि‍ने
चारू दि‍शा देखैत चलू।
चारू कोण ठेकना-ठेकना
आगू डेग बढ़बैत चलू।
जि‍नगीक बाट सपाट कहाँ छै
काँट-कुश छि‍ड़ि‍आएले अछि‍।
देखि‍-थामि‍ पएर रखि‍-रखि‍
ति‍ले-ति‍ल ससरैयेक अछि‍।
ग्रह-नक्षत्र ओ सूर्ज-चान
रूटिंग बनल जेकर दि‍न-राति‍क।
तहि‍ना ने रूटिंगो बनल छै
दैहि‍क, दैवि‍क ओ भौति‍क।
क्षण-पल, सेकेण्‍ड, मि‍नट
अछि‍ बनौने सीमा जहि‍ना।
देव-दानव सेहो अपन
बाट बनौने अछि‍ तहि‍ना।
खान-पान पकड़ि‍ चालि‍केँ
जहि‍ना जीवन पद्धति‍ बदलैए।
बान्‍हि‍ मन साधि‍ तन
साधक बनि‍ बनि‍ जीबैए।
साध्‍य साधि‍ साधन करैत
साधक नाओं धड़बैए।
साधक बनि‍ करैत साधना
भक्‍त–भूमि‍ पकड़ैए।
प्रेमी-प्रेमि‍का बीच जहि‍ना
प्रेम अपन लीला करैए।
तहि‍ना भक्‍त–भगवान बीच
प्रेमास्‍पदक पुल बनैए।
सात-समुद्र ओ सात पहाड़
सतरंगी बि‍‍जुड़ी चमकैए।
प्रखर ज्‍योति‍-सँ-ज्‍योति‍र्मय कऽ
भवसागर पार करैए।
       ))((

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