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Wednesday, April 11, 2012

एकटा बताह :: जगदीश मण्‍डल


एकटा बताह

जे जनकक संतान कहि‍यो
कृषि‍ वृत्ति‍ कि‍सान छलाह।
कृषि‍ कुशल कहि‍-कहि‍
दि‍न-राति‍ मलड़ैत छलाह।
भुमकम बाढ़ि‍ रौदीक भार सहि‍
जीवन-यापन करैत छलाह।
वेद-बखान नि‍त-प्रति‍दि‍न
साँझ-भाेर रटैत छलाह।
गति‍ समए केर बीच-बीच
दोरस हवा उपकए लगल।
नव-पुरान बीच-बीच
रंग-रूप बदलए लगल।
रंग-रूप बीच रंग भेद
पनपि‍-पनपि‍ पनपए लगल।
सोहरि‍-सोहरि‍ उठि‍-उठि‍
धन-गर्जन करए लगल।
साहोर‍-साहोर‍ मंत्र जपि‍
डंका-ठनका बचए लगल।
मानक मान समान लि‍अए
झड़कि‍-झड़कि‍ झड़कए लगल।
कुहरि‍-कुहरि‍ कलपि‍-कलपि‍
छाउर-आगि‍ खसए लगल।
जेना-जेना आगि‍ मड़ि‍आएल
शक्‍ति‍ श्रम घटए लगल।
घटबी पुरबै पाछू बेहाल
रीन-पेंइच फँसए लगल।
रीनि‍याक रीन कुरीन बनि‍-बनि‍
तरे-तरे घुसकए लगल।
पहुँचीसँ बाँहि‍ पकड़ि‍
धोबि‍या खेल खेलए लगल।
दसक दाह सम्‍हारि‍ पाबि‍ नै
मन-मनतर मथए लगल।
जे कहि‍यो मि‍थि‍ कहाबए
क्षीण शक्‍ति‍ कहबए लगल।
      ))((

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