Pages

Tuesday, April 10, 2012

धब्‍बा :: जगदीश मण्‍डल


धब्‍बा

रंग-रंगक धबैत धब्‍बा
दोस्‍ती कऽ संग धेलक।
उकनि‍ सि‍र चढ़ा गाछ
रीति‍-नीति‍ सब गमौलक।
सुखि‍ पात पतझड़ पाबि‍
पथार पसरि‍ धरतीपर।
नग्‍न–बेनग्‍न बनि‍ वृक्ष
नोर ढड़कए करनीपर।
दर्शनक सभ महि‍मा गाबए
जहि‍ना देश तहि‍ना वि‍देश।
दि‍शा वि‍हीन भऽ भऽ
कोन गीत गाओत सु-देश।
धन जीवन आकि‍ जीवन धन
पैसि‍ गंगा देखए पड़त।
अपना लेल अपने आँखि‍ये
गंगाजल पीबए पड़त।
बि‍दुषी आकि‍ ऋृषि‍का बनि‍
पुरबा पीबि‍ फुफुआएब।
धुन गुणक संग नाचि‍
नर्तक बनि‍ ठि‍ठि‍आएब।
मति‍-वि‍मति‍ पबि‍ते पाबि‍
दि‍शांसक खुमारि चढ़ैत।
ढड़कि‍-ढड़कि‍ ढाल ढल
हँसि‍-हँसि‍ वसन्‍त गबैत।

))((

No comments:

Post a Comment