Pages

Wednesday, April 11, 2012

ऐ पढ़बसँ मुरखे रहि‍तौं :: जगदीश मण्‍डल


ऐ पढ़बसँ मुरखे रहि‍तौं

ऐ पढ़बसँ मुरखे रहि‍तौं
हरे जोति‍तौं, कोदारि‍ये पाड़ि‍तौं।
रि‍क्‍शे चलैबतौं, ठेले ठेलतौं
उपहासक पात्रो तँ नहि‍ये बनि‍तौं।
ऐ पढ़बसँ मुरखे रहि‍तौं।
कि‍यो कहए भुसकौलहा हमरा
कि‍यो कहैत चोरि‍ पास।
कि‍यो कहैत कि‍नुआ डि‍ग्री छी
चारू दि‍स होइए उपहास।
धौना खसा तँ नहि‍ये चलि‍तौं
ऐ पढ़बसँ मुरखे रहि‍तौं।
नै पढ़ने नहि‍ये होइतए
पढ़ुआ कनियासँ बि‍आह।
नै जोड़ए पड़ैत खर्च सि‍नेमाक
नै जोड़ए पड़ैत साजो श्रृंगार
सीना तानि‍ गामोमे चलि‍तौं
ऐ पढ़बसँ मुरखे रहि‍तौं।
कतएसँ पुराएब खर्च बच्‍चाकेँ
कतएसँ आनब कनभेंट खर्च।
कतएसँ पुराएब इंग्‍लीस ड्रेस
कतएसँ आनब आवासीय खर्च।
भाग-भरोसे जे ठेलि‍ पइतौं
ऐ पढ़बसँ मुरखे रहि‍तौं
कोठीक नोकरी कोठि‍ये करि‍तौं
चोरा-नुका कऽ खुब कमैतौं।
अंग्रेजि‍या फैशनमे सजि‍-धजि‍
बम्‍बैया हीरो कहैबतौं
ऐ पढ़बसँ मुरखे रहि‍तौं।
   ))((

No comments:

Post a Comment