तरंग
सभतरि जगबए प्रेम एकचित्त
दोसर सदति विवाद करए
एम्हर-ओम्हर छोड़ि-छाड़ि
बीचका बाट पकड़ि रहए।
रंग-रूप, चेहरा अनेक
चेतन-चित्त तँ एक रहैत।
मुदा वृत्तिक किरदानीसँ
सदिखन तँ उगैत-डुमैत।
सत् बनि कखनो राज-बिराजए
रज बनि-बनि शासन करए
धरिते धारण तम तम-तमा
झहरि-झहरि फुनगीसँ गिरए।
खेलक खेल काल सिरजैए
अपनो तँ खेले बनैए
कहाँ रखि पाबए दिन-राति
गतियेकेँ मतियो बदलैए।
सृष्टिक तँ खेले विचित्र
सुख-दुख संग दिन-राति चलए
खेलए जेहेन खेल खेलाड़ी
ओहने ओ खेलौना पाबए।
कोनो खेल धरती बीच खेलए
खेलए कोनो सतरंगी अकास
कोनो सत् सागर खेलए
चुटकी बजा-बजा रनबास।
विवेकसँ पुछए जखन चित्त
थीसिस एन्टीथीसिसक बीच पड़ए
सिनथीसिस तँ सिनथीसिस छी
अ, उ, मक विचार करए।
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