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Wednesday, April 11, 2012

गुड़ घाव :: जगदीश मण्‍डल


गुड़ घाव

उपकि‍-उपकि‍ गुड़ घाव
तन-तन, फण-फण करए लगल।
सगर शरीरक आसन बनि‍
थइर अपन बान्‍हए लगल।
संग दि‍नक बढ़ि‍-बढ़ैत
गुड़ घाव कहबए लगल।
पसरि‍-पसरि‍ फोँसरी पसरि‍
सुख-दुख पीड़ रचए लगल।
समए संग ससरि‍-ससरि‍
पेड़-फेंड़ बनबए लगल।
जड़ि‍ एक रहि‍तो रहैत
फेंड़ जोड़ लगबए लगल।
संगे मोजरि‍, फुला संगे
संग-संग फलो रचए लगल।
संगे-संगे संग चलि‍
आशा फल देखबए लगल।
आश बास देखि‍-देखि‍
ति‍रपि‍त मन सि‍हरए लगल।
रक्‍त–भक्‍त बनि‍ पीब
पकि‍ पीज नि‍कलए लगल।
छेदि‍ देह पकड़ि‍ मांस
खील बनि‍ खि‍लए लगल।
पबि‍ते खील खि‍ल-खि‍ला
राति‍-दि‍न टहकए लगल।
टहकि‍-टहकि‍ घुसकि‍-फुसकि
मासु हार पकड़ए लगल।
पीड़ा हारक हू-हू-आ-हूहूआ
गरजि‍-तरंगि‍ नि‍कलए लगल।
हारक पीड़ मासु-पीज संग
दर्द मन बेदर्द बनल।
चि‍न्‍ह-पहचि‍न्‍ह हराएल देखि‍
हारल-हराएल बेड़बए लगल।
     ))((

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