मिझाइत दीप
बिनु वातीक दीप बनल छी
मोती बिनु तिरस्कृत सीप बनल छी
कहब की बिनु टाकाक गरीवक बेटी
ने ताज ने राज महीप बनल छी
साज सौन्दर्य रहितो मुदा
बिनु लक्ष्मी शारदा की करती
मोनक बेथा ककरासँ कही
तिलक सिन्धुक िनर्जन द्वीप बनल छी
आत्मो भावे तन अछि जहिना
बिनु सोनक श्रृंगार अछि तहिना
जनकक हृदए पझाइत भुस्सी सन
सौराठ-सभामे अपरतीप बनल छी
नोरक धारसँ आँखि सुरवाएल
विद्या गुणक पुष्प मौलाइल
ऐ धनक सवंतमे
जेठक दुपहरियाक विरह गीत बनल छी
आगाँ बढ़ू नव तरूण सभ मिलि कऽ
नै मौलाइत स्वर्ण पुष्प धन बिनु
मिझाइत दीपमे भरू सिनेह-सर
करू आलोकित बुझब अकासदीप बनल छी.....।
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