Pages

Sunday, May 6, 2012

पगलखना :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल


पगलखना

पागल ऐ संसारमे
पगलपनी खेल चलैत रहै छै।
पगला पागल पकड़ि‍
पगलखाना बनबैत रहै छै।
लटखेना दोकान जहि‍ना
मि‍रचाइ-मि‍सरी संग रहै छै।
संसारक झखुराएल वन तहि‍ना
पगलपाना गाछ पनपैत रहै छै।
पागल ऐ संसारमे
पगलपनी खेल चलैत रहै छै।
कि‍यो पगलाएल खेत कीनैले
तँ कि‍यो पगलाएल चुमै खेतले।
कि‍यो पगलाएल डाक-डाकनि‍
तँ कि‍यो पगलाइत अगवास ले।
रहि‍तो सबहक एक मंशा
बाट-घाट बौराइत चलै छै।
सभकेँ सभ पागल कहि‍
नाच पगलपनी नचैत रहै छै।
पागल ऐ संसारमे
पगलपनी खेल चलैत रहै छै।
कि‍यो पगलाएल सुख-शान्‍ति‍ ले
कि‍यो मधुशाला बौराएल रहै छै।
तेज सवारी पकड़ि‍ चढ़ि‍
बैलेंस जि‍नगी मि‍लबैत चलै छै।
पागल ऐ संसारमे
पगलपनी खेल चलैत रहै छै।
लपकि‍-झपकि‍ मासूम मौसममे
झाखुर वन बनबैत चलै छै।
पागल ऐ संसारमे
पगलपनी खेल चलैत रहै छै।
एक-भग्‍गू लूरि‍-बुधि‍ संग
एकबट्टू बाट बना चलै छै।
सुखाएल हाड़ स्‍वान जहि‍ना
अपने रस पीबैत जीबै छै।
जहि‍ये जनमल मानव धरती
संग स्‍वान अबैत रहल छै।
कटने-चटने सेर बरोबरि‍
संग मि‍ल संग नचैत रहै छै।
पागल ऐ संसारमे
पगलपनी खेल चलैत रहै।
~

No comments:

Post a Comment