लोहा सँ लोहा कटै अछि
विष काटै अछि विष कें,
मुदा भ्रष्ट सँ कहाँ उखड़ै अछि
भ्रष्टाचारक ओइध ...?
निज स्वार्थ हेतु आश्वासन सँ
सागर मे सेतु बना दै अछि,
रामक दूत स्वयं बनि सभ
मर्यादा कें दर्शाबै अछि,
जनमत केर हार पहीर कऽ ओ
रावण दरबार सजाबै अछि,
जौं करब विरोध तँ शंकर बनि
ओ तेसर नेत्र देखाबै अछि,
थिक प्रजातंत्र तें रावणों केँ
भेटल अछि समता केर अधिकार,
हमरे सबहिक शोणित-पोषित
थिक प्रजातंत्रक सरकार.....
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