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Tuesday, September 4, 2012

सहास- इन्द्रभूषण कुमार


इन्द्रभूषण कुमार, पि‍ताक नाओं- स्‍व. पुलकि‍त साहु, गाम- लक्ष्‍मि‍नि‍याँ, पोस्ट- छजना, भाया- नरहि‍या, जि‍ला- मधुबनी (बि‍हार)


सहास
भऽ रहल छल आयोजन काव्यपाठक
जुटल छल कविलोकनि सभ भागक
समाप्त भेल औपचारिकता
पढ़ए लागल कवि सभ अपन-अपन कविता।

बहुत रास कवि बहुत रंगक कविता
कि‍यो मोहित छल नायिकाक सुनर गालपर
कि‍यो व्यथित छल प्रेयषीक बदलल बेवहारपर
कि‍यो छलथि‍ क्रांतिक झंडा उठौने
कि‍यो रहथि‍ भ्रष्टाचारी सभकेँ भरिमन गरियौने।
अनमनस्यक भऽ कऽ हमहूँ सुनैत रहौं
कि‍यो सूतल नै माने तँए
निक-बहुत-निक करैत रहौं।

अचानक मंचपर अवतरित भेल एक नारी
जेहने देखैमे कारी
पहिरनो रहै तेहने मैल‍ साड़ी।

शुरू केलक अटकि-अटकि कऽ बाजनाइ
नै आबैत छल ओकरा शब्दक जाल बुननाइ
मुदा चेहरापर तेज छल
मनमे उत्साहक अतिरेक छल
भय नै, जँ कहि हुसब
श्रोता सभ भरिमन दूसत।

नै लय रहै ने रहै छंदक सुन्दरता
तैयो सभ प्रसन्न भऽ समवेत स्वरमे
केलथि हुनकर प्रयासक प्रशंसा।

जे कहि नै सकल शब्द
प्रयास ओकर कहलक
लागत नै कठिन
चाहे लक्ष्य हुअए किछु खास
बस राखि भरोसा अनपनापर
करी बढ़बाक सहास।


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