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Thursday, December 27, 2012

समाज सजल :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल


समाज सजल......

समाज सजल छै छि‍पाड़-उकट्ठी
छीप-उकठपना बेवसाय बनल छै।
रंग-बि‍रंग समाज गढ़ि‍-मढ़ि‍
रंग-रंग छीप कटैत रहै छै।
भाय यौ, रंग-रंग......।
आस-वि‍यास बनि‍ते जहि‍ना
चोर-माखन कृष्‍ण कहै छै।
गोप-गोपी बीच उमकि‍
कहि‍ उमकि‍ उकठपन कहै छै।
भाय यौ, कहि‍ उमकि‍......।
भावो लोक तहि‍ना भवए
मारि‍ सेन्‍ह काटि‍ कहै छै।

शास्‍त्री, शब्‍दशास्‍त्री कहि‍

कर्ता-धर्ता ब्रह्म कहै छै।

मीत यौ, कर्ता......।

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